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Description
ASAFALTA MUBARAK HO (Hindi) extols the virtues of Failure—something dreaded and detested by elder and younger generation alike. It emphatically declares failure to be an essential ingredient in the making of a true man. It is not the number of years lived but the number of failures faced that mature an innocent child of the nature into a complete person. Failures are no irritating impediments on way to success. They are the building blocks that help you pave your own path and tread up to the goal with greater confidence. They are the seasoning agents that enable a person to perceive the real value of and savour the sweetness of success in a responsible way.
Failure is a magic stone—having no permanent shape, colour or weight of its own. It is our reaction to the failure that provides it one. Courageous person welcomes the failure with a smile. The stone transforms into a scintillating, sparkling diamond of many hues. The defeatist hates it and tries to shy away. The same element changes into a grind stone around his neck. It adorns and bedecks the former, while bends the spine of the latter. The volume insists, on the basis of many case histories, that there is no reason to fear the failures. Every failure leaves a lesson , and that lesson if well learned, ensures future success beyond any doubt.
पुस्तक : असफलता मुबारक हो
यह पुस्तणक उस असफलता का गुणगान करती है जिससे हम सभी डरते हैं । हर व्यक्ति सफलता की मंजि़ल को पाना चाहता है, इसलिए असफलता से घृणा करता है, उससे बच कर निकलने का उपक्रम करता है । यह इसका मूल कारण यह है कि मनुष्य सदियों से सफलता और असफलता को परस्पर शत्रु अथवा विरोधी मानता आया है । यह सोच निराधार है । वास्तव मे असफलता ही सफलता की जननी है । हर असफलता एक सबक दे जाती है और यदि ऐसे सबक को ठीक से सीखा जाए तो इसका परिणाम निश्चित सफलता होता है ।
असफलता एक अजीब शय है, बिलकुल जादू के गोले की तरह । जो इससे डरता है, उसके गले में पत्थर का बोझ बन कर लटक जाती है, गर्दन झुका देती है । इसके विपरीत जो निडर होकर इसका सामना करता है, उसके गले में माला बन कर झूल जाती है, अलंकार बनकर व्यक्तित्व निखार देती है । कायर व्यक्ति के लिए दमनकारी मालिक है तो साहसी के लिए निष्ठा्वान सेवक । असल में असफलता का अपना कोई स्वतंत्र स्वभाव नहीं है, आकार नहीं है, स्वरूप नहीं है । यह व्यक्ति-सापेक्ष है, स्थिति-सापेक्ष है । असफलता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया ही इसको रंग, रूप और आकार प्रदान करती है; इसको मंगलकारी अथवा अमंगल-सूचक बनाती है ।
असफलताओं का स्वागत करें, उनका आभार जताएं और उनसे सफलता के मंत्र सीखें । अपनी असफलताओं पर गर्व करें । हर असफलता एक अमूल्य अनुभव है, अमूल्यय रत्न है । यह इसलिए भी अमूल्यक है कि यह आपकी असफलता है, आपकी मलकियत है, आपकी जमापूंजी का महत्वपूर्ण हिस्सा है । इसका विवेकपूर्ण निवेश आपके उज्ज्वल भविष्य की गारंटी है ।
Other Details
Publisher | Antrik Express Digital |
ISBN | 9788182600393 |
Publishing Date | 24-Aug-2013 |
Language | Hindi |
Territorial Rights |
Worldwide
|
Formats
This eBook is available in the following formats:
EPUB (Adobe DRM)
Format Type | EPUB (Adobe DRM) |
Language | Hindi |
Digital Rights Management | Implemented |
Reading | Allowed |
Copying | Not Allowed |
Printing | Not Allowed |
Expiration | Never Expire |
Software Requirements | Adobe Digital Edition Ver 1.7 |
Suitable Devices | Windows, Mac, Sony Reader, iRex Reader |
PDF (Adobe DRM)
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Language | Hindi |
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About the Author
SHAM LAL MEHTA has been a creative writer from his High School days. Besides hundreds of miscellaneous writings in verse and prose, he has authored seven books prior to this volume—three of them in English. He is a motivational speaker and has conducted many training programmes on “Personality Development” and “Leadership Development” as part of his job during 30 years of service with Public Sector Banks. He has been visiting many reputed institutions as guest speaker in his field of specialization. After retirement from service, he has started his own advisory “ATAM VIKAS” and devoted himself whole heartily to the subject of Self Development. Now this is his passion as well as profession.
श्री शाम लाल मेहता अपने स्कूली दिनों से रचनात्मक लेखन के क्षेत्र में ‘प्रचंड’ उपनाम से सक्रिय रहे हैं । आलेख, कहानी, कविता से लेकर व्यंग्य तक असंख्य रचनाएं देश की विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई हैं । इससे पहले एक कविता संग्रह ‘नवलिका’ सहित समाजार्थिक विषयों पर श्री मेहता की कुल सात पुस्तिकें –तीन अंग्रेजी में तथा चार हिंदी में --- प्रकाशित हैं । बैक-सेवा में रहते हुए आपने बड़ौदा, जयपुर, जलंधर, शिमला,चंडीगढ़ एवं अन्य कई नगरों में व्यकक्तित्व- विकास तथा नेतृत्व विकास सहित विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया है । अतिथि-वक्ता के रूप में शताधिक संस्थाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रभावी हिस्सा रहे हैं । बैंक की नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद आपने “आत्म–विकास” नाम से एक परामर्श संस्थान स्थापित किया है तथा इसी विषय पर गहन अनुसंधान में रत हैं । अध्य्यन, मनन, चिंतन और लेखन --- सभी कुछ इसी विषय पर केंद्रित है । इसी के विद्यार्थी हैं, प्रशिक्षणार्थी हैं, परामर्शक हैं और प्रशिक्षक भी ।
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